Mahakumbh 2025 Live Update Now: तंबुओं की नगरी, एक अद्वितीय अनुभव

Mahakumbh 2025 Live: महाकुंभ मेला भारत के सबसे विशाल और धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर 144 साल में इलाहाबाद (प्रयागराज) में आयोजित होता है। इस मेले में दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं, जो यहां आकर पुण्य अर्जित करने के लिए स्नान करते हैं, ध्यान लगाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस विशाल मेले में तंबू का एक खास महत्व है, क्योंकि ये तंबू अस्थायी आवास प्रदान करते हैं और मेले के दौरान श्रद्धालुओं और साधु-संतों के लिए शरणस्थल का काम करते हैं।

Mahakumbh 2025 Live: तंबु नगरी के तौर पर दुनिया में पहचानी जाने वाली कुंभनगरी को आकार देने का करीब 70 फीसदी काम लल्लू जी एंड संस के पास है। कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर निखिल अग्रवाल के मुताबिक वाराणसी से प्रयागराज आने के बाद उनके पूर्वज बाल गोविंद दास अग्रवाल उर्फ गुल्ली बाबू ने अपने पिता बैजनाथ दास अग्रवाल उर्फ लल्लू जी के नाम से 1918 से मेले में टेंट लगाने का काम शुरू किया।

Mahakumbh 2025 Live: गंगा की रेती पर इस दफा चार हजार हेक्टेअर क्षेत्रफल में तंबुओं की नगरी बसाई गई। 20 लाख से अधिक लोगों के ठहरने का यहां इंतजाम हुआ। बांस, बल्ली और कपड़े के सहारे इस तंबुओं की नगरी को 107 साल पुरानी कंपनी ने बसाया।

Mahakumbh 2025 Live: चाहे माघ मेला हो अथवा कुंभ आयोजन, अखाड़ों, साधु-संत एवं कल्पवासियों के साथ प्रयागराज की दो कंपनियां इस आयोजन में रच-बस चुकी हैं। तंबु नगरी के तौर पर दुनिया में पहचानी जाने वाली कुंभनगरी को आकार देने का करीब 70 फीसदी काम लल्लू जी एंड संस के पास है।

तंबू का महत्व:

महाकुंभ के दौरान तंबू एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में कार्य करते हैं, जहां श्रद्धालु और संत रुकते हैं। ये तंबू विशेष रूप से कुम्भ के मेले के दौरान तैयार किए जाते हैं, और इनमें विभिन्न आकारों और प्रकारों के तंबू होते हैं। कुछ तंबू साधुओं के लिए होते हैं, कुछ समूहों के लिए, और कुछ व्यक्तिगत उपयोग के लिए। तंबू का निर्माण बहुत ही व्यवस्थित तरीके से किया जाता है, ताकि अधिक से अधिक श्रद्धालु यहां आराम से ठहर सकें।

तंबू का जीवन:

महाकुंभ के दौरान, तंबू एक अद्वितीय समाज का रूप लेते हैं। जहां साधु-संत, श्रद्धालु, सेवक और पर्यटक मिलकर एक साझा जीवन जीते हैं। यहां एक-दूसरे से संवाद, ध्यान और भक्ति की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है। कई बार इन तंबुओं में संतों द्वारा प्रवचन और चर्चा होती है, जो लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का कार्य करती है।

तंबू और संगम का अद्भुत नजारा:

संगम (गंगा, यमुन और अदृश्य सरस्वती का मिलन स्थल) के किनारे बसे इन तंबुओं में स्नान के बाद आने वाले श्रद्धालु अपने अनुभवों को साझा करते हैं। इन तंबुओं का वातावरण पूरी तरह से धार्मिक और आध्यात्मिक होता है। श्रद्धालु यहां रात बिताते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और उपासना करते हैं, और उनका विश्वास होता है कि यहां का हर पल उन्हें मोक्ष की ओर एक कदम और करीब लाता है।

तंबू के निर्माण की प्रक्रिया:

महाकुंभ के तंबू का निर्माण पहले से ही महीनों पहले शुरू हो जाता है। इन तंबुओं को निर्माण में लगे श्रमिक और विभिन्न टीमों के द्वारा अत्यधिक ध्यानपूर्वक तैयार किया जाता है। इसमें बांस, तिरपाल, तार और अन्य सामग्री का उपयोग किया जाता है। इन तंबुओं का आकार इतना बड़ा होता है कि यहां पर हजारों लोग एक साथ रह सकते हैं।

तंबू में रहने का अनुभव:

तंबू में रहना एक अलग प्रकार का अनुभव होता है। साधारण जीवन से बिल्कुल हटकर यहां का जीवन होता है। तंबू में न तो ज्यादा सुविधाएं होती हैं और न ही आराम, लेकिन श्रद्धालु इस असुविधा को अपनाकर भगवान के दर्शन के लिए यहां आते हैं। तंबू में समय बिताना एक साधना की तरह होता है, जिसमें व्यक्ति को आंतरिक शांति और साधना की ओर ध्यान केंद्रित करना होता है।

Mahakumbh 2025 Live: कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर निखिल अग्रवाल के मुताबिक वाराणसी से प्रयागराज आने के बाद उनके पूर्वज बाल गोविंद दास अग्रवाल उर्फ गुल्ली बाबू ने अपने पिता बैजनाथ दास अग्रवाल उर्फ लल्लू जी के नाम से 1918 से मेले में टेंट लगाने का काम शुरू किया। वर्ष 1932 में लल्लू जी एंड संस नाम से कंपनी पंजीकृत कराई। उस समय की डीड कॉपी परिवार के पास आज भी मौजूद है। उसके बाद से यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है।

Mahakumbh 2025 Live: गुल्ली बाबू के बाद अब पांचवीं पीढ़ी इस काम को संभाल रही है। परिवार ने इसका दस्तावेजीकरण तो नहीं किया लेकिन, कंपनी के पास जो कुछ पुराने रिकॉर्ड हैं उसके मुताबिक आजादी के बाद तक काफी छोटे स्तर पर मेला होता था। अब कई गुना विस्तार हो चुका। पिछली बार (3200 हेक्टेअर) के मुकाबले मेला क्षेत्रफल करीब 800 हेक्टेअर बढ़ गया। ऐसे में टेंट आदि वस्तुओं की मांग बढ़ गई। कंपनी को डेढ़ साल पहले तैयारी आरंभ करनी पड़ी। असम से बांस मंगवाए गए, कर्नाटक से बल्लियां आईं। स्थानीय मार्केट में पर्याप्त कपड़ा न होने से सेलम (तमिलनाडु) से इसे मंगवाना पड़ा। सभी गोदामों में पिछले डेढ़ साल से दोनों पालियों में काम चलता रहा।

Mahakumbh 2025 Live: फाइव स्टार होटलों को भी मात देते रहे कॉटेज
कुंभनगरी में आचार्य महामंडलेश्वर समेत कई साधु-संतों के पंडाल ऐसे रहे जो सुविधा के मामले में फाइव स्टार होटलों को भी मात देते दिखे। संतों के पंडालों में वेटिंग हॉल, मॉडर्न टॉयलेट, वुडन फर्नीचर, ड्रॉइंग रूम, टीवी, हीटर, इलेक्ट्रिकल ब्लैंकेट, इंटरकॉम, वाई-फाई, सोफा, चेयर, डिजाइनर फ्लावर्स पॉट समेत अन्य आरामदायक वस्तुएं भी उपलब्ध कराई गईं। ठंड को देखते हुए टेंट में ऑयल हीटर भी दिए गए।

Mahakumbh 2025 Live: इन 11 कंपनियों ने भी संभाला तंबू नगरी बसाने का जिम्मा

  1. लल्लू जी एंड संस
  2. इयाक वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड
  3. पिरामिड फैबकॉन इवेंट मैनेजमेंट
  4. लल्लूजी गोपालदास एंड सन
  5. जीकेएस प्रोजेक्ट एंड इवेंट
  6. लल्लूजी डेरावाला प्राइवेट लिमिटेड
  7. लल्लूजी ब्रदर्स
  8. लल्लू जी इंटरप्राइजेज
  9. लल्लू जी टेंट कंपनी
  10. वृंदावन टेंट हाउस
  11. रक्यॉर इवेंट्स एंड एक्जीबिसन

Mahakumbh 2025 Live:

महाकुंभ के तंबू, सिर्फ अस्थायी आवास नहीं होते, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा होते हैं। ये तंबू हमें दिखाते हैं कि कैसे अस्थिरता और असुविधा के बीच भी भक्ति और समर्पण की भावना निरंतर बनी रहती है। महाकुंभ का अनुभव और तंबू में बिताया गया समय जीवन में एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करता है।

महाकुंभ में तंबू का अनुभव अनमोल है, जो श्रद्धालुओं को न केवल आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है, बल्कि उन्हें एक अद्वितीय समुदाय का हिस्सा बनने का अवसर भी प्रदान करता है।

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